21 दिन के लॉकडाउन के लिए आर्थिक रूप से तैयार नहीं भारत, सरकार को युद्ध स्तर पर करनी होगी तैयारी

कोरोनावायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में फैलता जा रहा है। इससे संक्रमित होने वालों की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। भारत समेत सभी देश कोरोना को फैलने से रोकने के लिए एक के बाद एक कड़े कदम उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की है जो 25 मार्च से शुरू हो गया है। इन 21 दिनों में किसी भी प्रकार की सार्वजनिक परिवहन सेवा, निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र के ऑफिस, बाजार, मॉल, व्यावसायिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद रहेंगी। हालांकि, आवश्यक वस्तुओं से संबंधित सभी सेवाएं पहले की तरह चलती रहेंगी। पीएम के इस ऐलान के बाद यह सवाल पैदा हो गया है कि क्या भारत 21 दिनों के लॉकडाउन के लिए आर्थिक रूप से तैयार है। यह सवाल इसलिए भी पैदा होता है कि भारत की 130 करोड़ की आबादी में से बड़ी आबादी ऐसी हैं जो दैनिक मजदूरी पर निर्भर है। लॉकडाउन के कारण सभी प्रकार की गतिविधियां ठप हो गई हैं, ऐसे में इस आबादी के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।



भारत को बड़े स्तर पर करनी होगी तैयारी
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि अभी के हालातों से लग रहा है कि देश 21 दिनों के लॉकडाउन के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है और सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करनी होगी। मनी भास्कर से फोन पर बातचीत में अरुण कुमार ने कहा कि लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। इन लोगों को सरकार की ओर से आमदनी का इंतजाम करना होगा। अरुण कुमार का कहना है कि जब चीन के वुहान शहर को लॉकडाउन किया गया था तब राज्यों की ओर से लोगों को खाने-पीने के सामान की आपूर्ति की गई थी। इसी प्रकार यहां भी सरकार को लोगों को खाने-पीने का सामान देना पड़ेगा। यह सामान राशन की दुकानों से दिया जा सकता है। इसके अलावा लोगों के इलाकों में स्थित निजी दुकानों से भी खाने-पीने के सामान की आपूर्ति कराई जाए। अरुण कुमार का मानना है कि खाने-पीने के सामान जैसी आवश्यक सेवाओं की पूर्ति के लिए सरकार को सेना और पुलिस की मदद लेनी चाहिए ताकि कोई भी जमाखोरी ना कर सके और गरीबों को भी आवश्यकता के अनुसार सामान उपलब्ध हो जाए। कोरोना के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को ग्रामीण विकास योजनाओं के तहत आवश्यकता के अनुसार कार्य उपलब्ध कराया जाए।



स्वास्थ्य सुविधाओं में किया जाएगा इजाफा
अरुण कुमार का कहना है कि कोरोना की जांच 4500 रुपए खर्च करने पर हो रही है। गरीब लोग इस खर्च को वहन करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में सरकार को मुफ्त जांच समेत कई अन्य प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। आने वाले समय में कोरोना के ज्यादा फैलने की संभावना जताई जा रही है। यदि यह बड़े पैमाने पर फैलता है तो ज्यादा स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत पड़ेगी। इससे निपटने के लिए सरकार को अभी से ज्यादा से ज्यादा इंतजाम करने चाहिए। खाली पड़े हॉस्टल, पुलिस लाइन, सेना के खाली पड़े भवनों में सरकार को अस्थायी अस्पतालों का निर्माण करना चाहिए। इसके अलावा मेडिकल उपकरणों के निर्माण में तेजी लानी चाहिए। अरुण कुमार का कहना है कि अभी सरकार ने कोरोनावायरस से निपटने के लिए 15 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की है जो 130 करोड़ की आबादी के लिए नाकाफी है। सरकार को राहत पैकेज की राशि में बढ़ोतरी करनी चाहिए।



खाद्य संकट से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर खरीदारी करनी होगी
अरुण कुमार का मानना है कि कोरोना का संकट लंबे समय तक रह सकता है। ऐसे में लॉकडाउन के कारण भविष्य में खाद्य संकट पैदा हो सकता है। इस संकट से निपटने के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर खरीदारी करनी चाहिए। इस बार गेहूं की बंपर फसल होने की संभावना जताई जा रही है। कुछ ही दिनों में फसल की कटाई शुरू हो जाएगी। सरकार को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए। अरुण कुमार का कहना है कि कोरोना से जो हालात पैदा हुए हैं उनसे निपटने के लिए सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्रों को भी आगे आना चाहिए और जरूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए।



भारत के लिए इसलिए जरूरी है लॉकडाउन
पीएम की ओर से 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद इस पर चारों ओर चर्चा चल रही है। कुछ लोग इससे सहमत हैं वहीं कुछ लोग असहमति जता रहे हैं। लॉकडाउन से सहमत लोगों का कहना है कि कोरोनावायरस का प्रभाव रोकने के लिए यह जरूरी है। वहीं असहमति जताने वालों का कहना है कि इससे आम आदमी खासकर मजदूर वर्ग के सामने जीवन यापन का संकट पैदा होगा। हालांकि, असहमति जताने वालों की संख्या काफी कम है। वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रति वर्ग किलोमीटर 455 लोग रहते हैं जबकि वैश्विक औसत 48 लोगों का है। चीन में प्रति वर्ग किलोमीटर 148 लोग रहते हैं। ऐसे में यहां पर कोरोनावायरस के तेजी से फैलने की संभावना ज्यादा है, जिसे लॉकडाउन के जरिए सोशल डिस्टेंस बनाकर रोका जा सकता है।


लॉकडाउन से गैरसंगठित क्षेत्र के 41 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे
2011-12 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 40 करोड़ की वर्कफोर्स है। जबकि आर्थिक सर्वे और विभिन्न सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या अब 45 करोड़ के करीब पहुंच गई है। इसके करीब 95 फीसदी यानी करीब 41 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। असंगठित क्षेत्र के कुल कामगारों में से आधे से ज्यादा खुद का कारोबार करते हैं जबकि अन्य कैजुअल वर्कर की श्रेणी में आते हैं। यानी यह लोग कृषि, खनन, पटरी पर रेहड़ी, घरों में काम और निर्माण कार्यों जैसे अनियमित रोजगार से जुड़े हैं जहां पर रोजाना भुगतान के आधार पर कार्य किया जाता है। इस लॉकडाउन का सबसे ज्यादा इन्हीं लोगों पर पड़ेगा। हालांकि श्रम मंत्रालय ने नोटिस जारी कर सभी कारोबारियों से कहा है कि वे अपने यहां कार्य कर रहे कर्मचारियों को ना तो नौकरी से निकालें और ना ही उनकी सैलरी काटें।



राज्यों की ओर से की गई घोषणाएं



  • उत्तर प्रदेश सरकार ने 16.5 मिलियन गरीब परिवारों को 1 महीने का राशन मुफ्त देने की घोषणा की है।

  • दिल्ली सरकार ने प्रति व्यक्ति-प्रतिमाह 7 किलो गेहूं और 5 किलो चावल बिना चार्ज देने का ऐलान किया है।

  • पुणे शहर में आवश्यकता पड़ने पर एक महीने का राशन एडवांस दिया जाएगा।

  • केरल सरकार ने कोरोना पीड़ितों को मुफ्त खाद्य अनाज देने का ऐलान किया है।

  • राजस्थान सरकार ने 1 करोड़ बीपीएल परिवारों को दो महीने का अनाज मुफ्त में एडवांस देने की घोषणा की है। इसके अलावा एनएफएसए से बाहर के लोगों को आवश्यक वस्तुओं के फूड पैकेट दिए जाएंगे।

  • कर्नाटक सरकार ने प्रत्येक बीपीएल परिवार को 10 किलो चावल और 2 किलो गेहूं मुफ्त देने की घोषणा की है।

  • हरियाणा सरकार ने श्रमिकों, निर्माण मजदूरों के अलावा रेहड़ी-फड़ी वालों को 4500 रुपए मासिक की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है। यह सहायता चार किस्तों में साप्ताहिक आधार पर दी जाएगी।

  • बिहार सरकार ने गरीब परिवारों को मुफ्त अनाज देने का ऐलान किया है।